नववर्ष के अवसर पर जे एस पी जी कॉलेज के तत्वावधान में कवि सम्मेलन और मुशायरा आयोजित
ज़बाँ बंदी का मतलब है बगावत को हवा देना - जॉनी फॉस्टर
सिकंदराबाद – मक़सूद जालिब
जतन स्वरूप पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री कॉलेज के सौजन्य से नव वर्ष के उपलक्ष में महफिले तहजीबो अदब के शीर्षक से गंगा जमुनी कवि सम्मेलन और मुशायरा का आयोजन राजमहल वेंकट हाॅल में किया गया। जिसमें कवियों और शायरों ने अपना कलाम सुन कर खूब तालियां बटोरीं। सर्दी और कोहरे के बावजूद बड़ी संख्या में दर्शक उपस्थित रहे। कार्यक्रम का आगाज एसडीएम संतोष कुमार जी ने मां सरस्वती के चित्र के सामने शमा रोशन करके किया।
इसके पश्चात पंकज तायल ने सरस्वती वंदना और सैयद अली अब्बास नोगावी ने नाते पाक से कवि सम्मेलन मुशायरे का आगाज किया । कार्यक्रम में जॉनी, फास्टर समर कलीम, अली अब्बास नौगांवी, दौलत राम शर्मा, मुशर्रफ हुसैन महज़र, डॉक्टर आलोक बेजान, डॉक्टर यासमीन मूमल, अमानुल्लाह खालिद, मकसूद जालिब, अनिमेष शर्मा आतिश राजीव कामिल संगीता अहलावत, शकील सिकंदराबादी, दिव्य हँस दीपक, डॉक्टर राही शेदा और ऐंन मीम कौसर आदि ने कार्यक्रम में चार चांद लगाए। कॉलेज के छात्रों ने भी अपने जोहर दिखाए। कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबू बुद्धदेव जी ने की और संचालन कॉलेज के प्रवक्ता डॉ नवीन कुमार और डॉक्टर मोहम्मद फारूक ने संयुक्त रूप से किया। मुख्य अतिथि एसडीम संतोष कुमार जी ने समस्त कवि और शायरों को शील्ड और शॉल पहनकर उनका सम्मान किया । एसपीजी कॉलेज के संरक्षक नितिन भटनागर जी ने मुख्य अतिथि को बुके देकर उनका स्वागत किया। कार्यक्रम में नगर के प्रबुद्ध जनों ने भाग लिया। कार्यक्रम में पसंद किए गए कुछ शेर और मुक्तक पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है-
मेरी जानिब से हाकिम को कभी जाकर बता देना,
ज़बाँबंदी का मतलब है बगावत को हवा देना
– जानी फास्टर
ज़िन्दगी शादाब हो जाती मेरी कब की मगर
आप को पलकें उठाने में ज़माने लग गए
– अनिमेश शर्मा आतिश
जहाँ हिंदू मुसलमान प्यार से मिलजुल के रहते हैं
उसे हम फ़ख्रिया लहजे में हिंदुस्तान कहते हैं
– डॉक्टर राही शैदा
अदाकारी करोगे तो अदाकारी समझता है
मियां इस वक़्त बच्चा भी रियाकारी समझता है
हम अपनी ही ज़बाँ से अब वफादारी नहीं करते
समर कुतिया का पिल्ला भी वफादारी समझता है
– कलीम समर अलीग
जब से वो मेरे घर आने जाने लग गए
घर के दीवार ओ दर गुन गुनाने लग गए
– मुशर्रफ़ हुसैन महज़र पार्षद
उम्र भर की सब कमाई आ गई दलान में
जो थी संचित पाई पाई आ गई दलान में
घर के सब कमरे बहू बेटों के हिस्से आ गए
और मां की चारपाई आ गई दलान में
– डॉक्टर आलोक बेजान
है दुश्मनी क़दीम मेरी ज़लज़लों के साथ।
लड़ती हूँ रोज़ इनसे नए वलवलों के साथ।
दिन की थकन को ओढ़ के सोती हूँ रोज़ मैं,
उठती हूँ रोज़ सुब्ह नए हौसलों के साथ।
– डॉ. यासमीन मूमल
तू मेरे नाम से बदनाम ना हो जाए कहीं तेरी तस्वीर को देखा तो छुपा कर देखा -दौलत राम शर्मा
कहकशाँ जिस्म की शाखों पे सजा दे या रब
ज़िंदगी का ये अंधेरा नहीं देखा जाता
– सैयद अली अब्बास नौगांवी
गुम है ज़लालतों के अंधेरों में गोडसे
गाँधी दिलों में दोस्तो ज़िंदा है आज भी
– मक़सूद जालिब
कार्यक्रम को कार्यक्रम को सजाने में कन्वीनर मयंक सक्सैना, दीपक द्विवेदी डॉक्टर अरविंद चौहान मुनीब हसन आदि का महत्वपूर्ण सहयोग रहा। अंत में कॉलेज के संरक्षक नितिन पटना करने सभी उपस्थित दलों का आभार जताया।