मेरी तश्ना लबी देखकर इक नदी मेरे घर आ गई : अदीबा सदफ
मेरी तश्ना लबी देखकर इक नदी मेरे घर आ गई : अदीबा सदफ

सिकंदराबाद – मकसूद जालिब
नगर के मौहल्ला चौधरी वाड़ा,नई बस्ती में निकट मदीना मस्जिद, शनिवार की सांय एक शैयरी नशिस्त (काव्य गोष्ठी) का आयोजन किया गया। जिसमें स्थानीय और बाहर के कवि व शायरों ने भाग लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता उस्ताद शायर अमानुल्लाह खालिद ने की और संचालन बुजुर्ग शायर इरशाद अहमद शरर एडवोकेट ने किया । प्रोग्राम का आगाज शरर बर्नी ने नाते पाक से किया। गोष्ठी में शामिल शायरों का पसंदीदा कलाम पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है-
खुशियां तो जालिमों ने सब आपस में बाँटलीं
गम दे के मुझसे कह दिया तेरा नसीब था
– अमानुल्लाह खालिद
राह में बिखरे हैं मोती हर t तरफ
रात फिर बस्ती में रोया कौन है
– ऐंन मीम कौसर
लोरियां देती रही माँ तो शरर बच्चों को
भूखे बच्चों को सुलाने में बड़ी देर लगी
– इरशाद अहमद शरर
मानता कोई नहीं फैसला उसका वर्ना
दिल जहांगीर का दरबार है लियाकत साहब
– लियाकत कमालपुरी
जहां पर खैरियत से रात गुजरे
परिंदे वह ठिकाना चाहते हैं – डॉक्टर शैदा राही बर्नी
मेरी तश्ना लबी देखकर
इक नदी मेरे घर आ गई – अदीबा सदफ
वह शख्स जिंदगी से परे जा के मर गया
जिसके ज़हन में आई थी सीता हरण की बात
– सैयद गुफरान रशीद
यह हकीकत है कि ऐसा नहीं देखा जाता
इश्क में गोरा या काला नहीं देखा जाता
– अशोक साहिब गुलावठी
तेरे दावा ऐ मुहब्बत पे यक़ीं कैसे करूँ
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
– मक़सूद जालिब
हमारा मसाला इतना है युसूफ नजर है कैद में मंजर खुला है
– युसूफ बर्नी
इन के अलावा अबुज़र ग़ाज़ी ने भी अपने दिलकश लहजे में ग़ज़ल पढ़ कर खूब वाहवाही लूटी।
आखिर आयोजक अब्दुस्सलाम मंसूरी ने सभी अतिथियों का आभार जताया और जलपान कराया।