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मेरे पांवों के छाले पूछते हैं , कहाँ है घर तेरी आवारगी का – कौसर

मेरे पांवों के छाले पूछते हैं , कहाँ है घर तेरी आवारगी का - कौसर

मक़सूद जालिब

बुलंदशहर – साहित्य और सद्भाव को समर्पित नगर की चर्चित साहित्यिक संस्था बज़्मे ख़ुलूस ओ अदब के तत्वावधान में मलका पार्क बुलंदशहर में एक ओपन माइक पोयट्र फंक्शन(कवि सम्मेलन व मुशायरा) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के अध्यक्षता वरिष्ठ शायर हुसैन अहमद आज़म साहब ने की। संचालन सैयद अली अब्बास नौगावी ने अपने पुरकशिश अंदाज़ में किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नदीम अख्तर साहब ने फीता काटकर कार्यक्रम का आग़ाज़ कराया। मेहमाने ज़ी वक़ार जनाब इरशाद अहमद शरर, पूर्व एमएलए बुधपाल सिंह सजग ,खुर्शीद आलम राही तथा विजय कुमार सिंह रहे। कार्यक्रम की शुरुआत किशोर अग्रवाल की सरस्वती वंदना और सैयद अली अब्बास की नाते पाक से हुई।

संयोजक ऐन0मीम0कौसर जो संस्था के संस्थापक भी हैं ने बताया कि यह बुलंदशहर में इस प्रकार का पहला कार्यक्रम था जिसमें नए रचनाकारों को अपना टैलेंट दिखाने का पूरा मौक़ा दिया गया।। जिन शायरों/ कवियों के कलाम श्रोताओं द्वारा अधिक पसंद किए गए उनकी बानगी देखें –

मेरे पांवों के छाले पूछते हैं
कहां है घर तेरी आवारगी का
-ऐन0मीम0कौसर

वही तो झुक के मिलते हैं कि जिन में जान है लोगो,
अकड़ना तो फक़त मुर्दे की ही पहचान है लोगो
– सैयद अली अब्बास नौगांवी

हज़ारों फूल से चेहरे थे यूं तो ,
मेरी आंखों में लेकिन तू बसा था
– अदीबा सदफ़

इश्क में हो गए नाकाम हमारा क्या है,
हो गये मुफ़्त में बदनाम हमारा क्या है
– इरशाद अहमद शरर

डर तो ये है कही बह जाए न मिट्टी का मकां,
रक्स करती हुई बरसात से डर लगता है
– राही निज़ामी शैदा

नई उमंगे नए हैं सपने ये चांद सूरज हैं उसके अपने वो दूर साहिल पै एक बच्चा नई ही दुनिया बसा रहा है
– राजीव कामिल

उनका पाना बड़ा दुश्वार है लियाकत साहब
ज़िंदगी बीच में दीवार है लियाकत साहब
– लियाक़त कमलापुरी

इंद्रधनुष से रंग समेटे तन पर प्यारी साड़ी हो
अपने जीवन का हमराही प्यारा और अनाड़ी हो
– संगीता अहलावत

साया ए दीवार के मोहताज हैं अहले खिरद
हम जुनूँ परवर लगा लेते हैं बिस्तर धूप में
– हनीफ आरज़ू

जाने कितने आशिक छुपे हैं आंखों की गहराई में
दरिया की सूरत बैठे हैं रातों की तनहाई में
– जी पी सिंह सफ़र खुर्जा

तमाम जिंदगी इस जिंदगी के झंझट ने
तमाम जिंदगी मुझको निठाल रखा है
– सैयद गुफ़रान राशिद गुलावठी

ये चंद रोज़ की फ़ुरकत अजीब होती है
इसे भुलाने में कितने जमाने
लगते हैं
– फ़हीम कमालपुरी

दिल मेरा कैसे घायल हुआ
मेन रहज़न बना बनाया ना था
– मोमिन अकबर पुरी

औरत को क्यों कहते हैं अबला
पति जब कमा के लाता है तो कहती है सबला
– बुधपाल सिंह सजग

इनके अतिरिक्त जिन शायरों और कवियों ने अपना कलाम पेश किया वो हैं अबशीन अंसारी , विजय कुमार सिंह, किशोर अग्रवाल , डॉक्टर मुबीम रहबर , राग़िजब अली ज़हर, बाग़ी।
आखिर में संस्था के संस्थापक एन मीम कौसर ने सभी आने वालों का शुक्रिया अदा किया।

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